Scribe For Today
Subscribe my YouTube Channel for meditational/Spiritual video’s/posts – Ajit Karekar – YouTube
For 8th November 2022 – Things To Avoid During The Lunar Eclipse (Blood Moon)
The planetary phenomenon when the shadow of the Earth falls on the Moon is known as Lunar Eclipse.
- Avoid traveling or conducting important business activities during the Sutak period. This is because an eclipse is considered inauspicious for material activities
- Pregnant women should take special precautions during a lunar eclipse
- Stay indoors. Try not to let any eclipse light fall on you or inside your house during Sutak times
- Even though the lunar eclipse is not considered harmful for the eyes, the rishis and sages suggest not looking at the moon during an eclipse
- It is advised to cleanse your aura before and after the lunar eclipse by taking a proper bath
- Refrain from eating or drinking anything during the Sutak period. Discard any previously cooked food and prepare a new, fresh meal once the eclipse ends
- Conduct prayers, meditation, or sadhana during the actual time of the eclipse to reap great fruits and benefits.
For all, play this Naad Brahma Healing sound from my YouTube channel, during meditation/chanting on this Blood Moon Eclipse to balance your energies or to activate specific Guru Mantra’s for specific purpose.
- Provide genuine feedback @ Testimonial/Feedback – Shivam Healing & Consultancy
- If you want spiritual progress or to heighten your conscious awareness, an eclipse is considered to be one of the most suitable times to perform special, extended prayers
- Offering prayers to Lord Shiva (the Lord of Moon) helps in avoiding negative energies during a lunar eclipse. You can chant the following Mantra- “Om Namah Shivaya || ॐ नमः शिवाय ||”
Subscribe my YouTube Channel for meditational/Spiritual video’s/posts – Ajit Karekar – YouTube
Shivam Heals
============================
In Grave crisis this will help
।। दुर्गा द्वात्रिंशन्नाममाला ।।
यदि कोई व्यक्ति कभी किसी घोर संकट में फंस गया हो उसको सभी मदद के दरवाजे बंद नजर आ रहे हो अगर उसकी खुद की परछाई भी उसका साथ ना दे पा रही हो ऐसे सर्वथा विपरीत परिस्तिथि में भी अगर वह माँ भगवती के शरण में चला जाये और यह उनकी दुर्गा द्वात्रिंशन्नाममाला अर्थात माँ दुर्गा के अति शक्तिशाली 32 नामों का जप नियमपूर्वक करें तो उसकी निश्चित ही सभी शत्रुओ से रक्षा हो जाती है ।
इस उपाय के बारे में स्वयं माँ दुर्गा ने कहा है की ’’जो मानव नित्य मेरे इन नामों का उच्चारण करेगा वह हर शत्रु हर प्रकार के भय से हमेशा मुक्त रहेगा। “
माँ दुर्गा के इन नामो का जप पूर्ण श्रद्धा से करना चाहिए और मन में किसी भी प्रकार की शंका नहीं होनी चाहिए ।
माँ दूर्गा के ३२ नाम
1- दूर्गा
2- दुर्गातिश्मनी
3- दुर्गापद्धिनिवारिणी
4- दुर्गमच्छेदिनी
5- दुर्गसाधिनी
6- दुर्गनाशिनी
7- दुर्गतोद्वारिणी
8- दुर्गनिहन्त्री
9- दुर्गमापहा
10- दुर्गमज्ञानदा
11- दुर्गदैत्यलोकदाव्नला
12- दुर्गमा
13- दुर्गमालोका
14- दुर्ग्मात्मस्वरुपिणी
15- दुर्गमार्गप्रदा
16- दुर्गमविद्या
17- दुर्गमाश्रिता
18- दुर्गमज्ञानसंस्थाना
19- दुर्गमध्यांन्भासिनी 20- दुर्गमोहा
21-दुर्गमगा
22-दुर्गमार्थस्वरुपिणी 23- दुर्गमासुरसंहत्री
24- दुर्गामयुध्धारिणी
25- दुर्गमांगी
26- दुर्गमता
27- दुर्गम्या
28- दुर्गमेश्वरी
29- दुर्गभीमा
30- दुर्गभामा
31- दुर्गभा
32- दुर्गदारिणी
अगर परिवार के सदस्य 1 निश्चित समय पर सरसों के तेल का दीपक लगाकर सामूहिक 11 पाठ 21 दिन तक करें तो बहुत जल्दी लाभ होगा
पाठ के पहले गणेशजी व गुरु स्मरण व 1 पाठ कुंजिका स्तोत्र का करलें दीपक सरसों के तेल का लगाएं
Credits– Pallavi Pahva
——————————–
4 Jan 2020
Tip
To get blessings of Shani Dev, to come out of Shani dosh, start your long time pending work – keep all the below things in your pocket or purse for 8 continuous Saturdays.
👉 Eight pieces of full Udad
👉 Eight pieces of Black sesame seeds
👉 One blue flower
शिवाय नमः
14 OCT
Vaastu Tip
Never cut hair/nails on Thursday’s.
Doing so, will show negative affect on your Wealth.
🙏🏻शिवाय नमः🙏🏻
धन लाभ के लिऐ 11 गोमती चक्र अपने पुजा स्थान मे रखना चाहिऐ उनके सामने ॐ श्री नमः का जाप करना चाहिऐ। इससे आप जो भी कार्य करेंगे उसमे आपका मन लगेगा और सफलता प्राप्त होगी । किसी भी कार्य को उत्साह के साथ करने की प्रेरणा मिलेगी।
गोमती चक्रों को यदि चांदी अथवा किसी अन्य धातु की डिब्बी में सिंदुर तथा अक्षत डालकर रखें तो ये शीघ्र फलदायक होते है। होली, दीवाली, तथा नवरात्रों आदि पर गोमती चक्रों की विशेष पुजा की जाति है। अन्य विभिन्न मुहुर्तों के अवसर पर भी इनकी पुजा लाभदायक मानी जाती है। सर्वसिद्धि योग तथा रावेपुष्य योग आदि के समय पुजा करने पर ये बहुत फलदायक है।
गोमती चक्र की पूजा—-
होली, दिवाली और नव रात्रों आदिपर गोमती चक्र की विशेष पूजा होती है। सर्वसिद्धि योग, अमृत योग और रविपुष्य योग आदि विभिन्न मुहूर्तों पर गोमती चक्र की पूजा बहुत फलदायक होती है। धन लाभ के लिए ११ गोमती चक्र अपने पूजा स्थान में रखें तथा उनके सामने ॐ श्रींनमः का जाप करें।
ऊपरी बाधाओं से मुक्ति दिलाए गोमती चक्र—-
गोमती चक्र कम कीमत वाला एक ऐसा पत्थर है जो गोमती नदी में मिलता है। विभिन्न तांत्रिक कार्यों तथा असाध्य रोगों में इसका प्रयोग होता है। इसका तांत्रिक उपयोग बहुत ही सरल होता है। किसी भी प्रकार की समस्या के निदान के लिए यह बहुत ही कारगर उपाय है।
2- यदि घर में बीमारी हो या किसी का रोग शांत नहीं हो रहा हो तो एक गोमती चक्र लेकर उसे चांदी में पिरोकर रोगी के पलंग के पाये पर बांध दें। उसी दिन से रोगी को आराम मिलने लगता है।
3- प्रमोशन नहीं हो रहा हो तो एक गोमती चक्र लेकर शिव मंदिर में शिवलिंग पर चढ़ा दें और सच्चे ह्रदय से प्रार्थना करें। निश्चय ही प्रमोशन के रास्ते खुल जाएंगे।
4- व्यापार वृद्धि के लिए दो गोमती चक्र लेकर उसे बांधकर ऊपर चौखट पर लटका दें और ग्राहक उसके नीचे से निकले तो निश्चय ही व्यापार में वृद्धि होती है।
5- यदि इस गोमती चक्र को लाल सिंदूर के डिब्बी में घर में रखें तो घर में सुख-शांति बनी रहती है।
प्रमोशन के लिए टोटका—-
प्रमोशन के लिए प्रत्येक सोमवार को शिवजी पर एक गोमती चक्र चढाये।
व्यापार बढ़ाने के लिए कुछ टोटके—-
गोमती चक्र लक्ष्मी का स्वरुप है। ११ गोमती चक्र एक लाल पोटली में बाँध कर दूकान में रखने से व्यापार अच्छा चलेगा।
गोमती चक्र—-
यदि बीमार व्यक्ति ठीक नही हो पा रहा हो अथवा दवाइया नही लग रही हो तो उसके सिरहाने पाँच गोमती चक्र “ॐ जूं सः” मंत्र से अभिमंत्रित करके रखे , रोगी को शीघ्र ही स्वाथ्य लाभ होगा।
9 दिन के मन्त्र इस प्रकार हैं –
1. पहला नवरात्रि ( 10 अक्तूबर )
ॐ शां शीं शूं शैलपुत्रये में शुभम कुरु कुरु स्वाहा
2. दूसरा दिन (11 अक्तूबर )
ॐ ब्रां ब्रीं ब्रूं ब्रह्मचरिन्ये नम:
3. तीसरा दिन (12 अक्तूबर )
ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं चन्द्रघंटाये स्वाहा
4. चौथा दिन (13 अक्तूबर )
ॐ ह्रीं कूष्माण्डाये जगत प्रसूतये नम:
5. पांचवा दिन (14 अक्तूबर)
ॐ ह्रीं स: स्कन्दमात्रये नम:
6. छठा दिन (15 अक्तूबर)
ह्रीं श्रीं कात्यान्ये स्वाहा
7. सातवाँ दिन (16 अक्तूबर)
ऐं ह्रीं क्लीं कालरात्र्ये नम:
8. आठवां दिन (17 अक्तूबर)
ह्रीं गौरी रूद्रदयिते योगेश्वरी हूं फट स्वाहा
9. नवां दिन (18 अक्तूबर)
ॐ ह्रीं स: सर्वार्थ सिद्धिदात्री स्वाहा
1. लक्ष्मी बीज मन्त्र
ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मीभ्यो नमः॥
Om Hreem Shreem Lakshmibhayo Namah॥
2. महालक्ष्मी मन्त्र
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नम:॥
Om Shreem Hreem Shreem Kamale Kamalalaye Praseed Praseed
Om Shreem Hreem Shreem Mahalakshmaye Namah॥
3. लक्ष्मी गायत्री मन्त्र
ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ॐ॥
Om Shree Mahalakshmyai Cha Vidmahe Vishnu Patnyai Cha Dheemahi
लक्ष्मी मंत्र: राशि अनुसार जपिए, भर देते हैं घर में धन ही धन
मेष
मंत्र- श्रीं
वृषभ
मंत्र- ॐ सर्वबाधा विर्निमुक्तो धनधान्यसुतान्वित:, मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय:
मिथुन
मंत्र- ॐ श्रीं श्रीये नम:
कर्क
मंत्र- ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ॐ
सिंह
मंत्र- ॐ श्रीं महालक्ष्म्यै नम:
कन्या
मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं महालक्ष्मी नम:
तुला
मंत्र- ॐ श्रीं श्रीय नम:
वृश्चिक
मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मीभ्यो नम:
धनु
मंत्र- ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्म्यै नम:
मकर
मंत्र- ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौं ॐ ह्रीं क ए ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं सकल ह्रीं सौं ऐं क्लीं ह्रीं श्री ॐ
कुंभ
मंत्र- ऐं ह्रीं श्रीं अष्टलक्ष्मीयै ह्रीं सिद्धये मम गृहे आगच्छागच्छ नमः स्वाहा
मीन
मंत्र- ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्म्यै नम:
———————————————————
Vastu TIP – Center
Mainly OWNER, residents will always have multiple health issues.
Center of the Vastu should be an open space, kept clean, avoid wall, avoid staircase, avoid drainage in this area.
There are remedies to reduce the ill effects.
Hari OM
———————————————————
Vastu TIP – East & North East
Vastu Tip – North East
North East – (Ishaanya – Ishwar Sthaan)/Gods place
Brings Godly Blessings
If disturbed – Blocks growth, unneccesary stress/tension, headache, affects childrens brain. aggression, (ADHD) and education.…
———————————————————
Owning a house, plot, bunglow, or planning…must read..
Directions, placements of objects & energies plays important role for a Happy ad a succesful Vastu and people living in.
Even if the directions of Vastu is good, Cuts, Extensions, Under Ground/Overhead Water Tanks in incorrect directions, Soil of the plot, plane
If directions & Energy of the Vastu are not correct. Either, remediate it asap or it should be banned at earliest as possible, as it creates undue suspicions in the minds of the owners, financial loss, builds stress, blocks growth, creates unhealthy environment for all.
Before its too late, act on it or Enjoy Tug Of War with Problems.
www.shivamhealing.com
9860093924
—————————————–
ॐ
सर्वे भवन्तु सुखिनः
सर्वे सन्तु निरामयाः ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु
मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत् ।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
Om Sarve Bhavantu Sukhinaha
Sarve Santu Nir-Aamayaaha |
Sarve Bhadraanni Pashyantu
Maa Kashcid-Duhkha-Bhaag-Bhavet |
Om Shaantih Shaantih Shaantih ||
Meaning:
1: Om, May All become Happy,
2: May All be Free from Illness.
3: May All See what is Auspicious,
4: May no one Suffer.
5: Om Peace, Peace, Peace.
============================================================================
*लक्ष्मी बीज मंत्र :-*
।। ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मीभयो नमः।।
*महालक्ष्मी मंत्र :-*
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नम:॥
*लक्ष्मी गायत्री मंत्र :-*
ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ॐ॥
*सुभाषितम्* :-
*अष्टावक्र गीता – अष्टादश अध्याय :-*
अकुर्वन्नपि संक्षोभाद्
व्यग्रः सर्वत्र मूढधीः।
कुर्वन्नपि तु कृत्यानि
कुशलो हि निराकुलः॥१८- ५८॥
अर्थात :- अज्ञानी पुरुष कुछ न करते हुए भी क्षोभवश सदा व्यग्र ही रहता है। योगी पुरुष बहुत से कार्य करता हुआ भी शांत रहता है॥५८
आप सभी को दीपोत्सव पर मंगलमय शुभकामना… माँ महालक्ष्मी, श्री गणेश एवं माँ सरस्वती आपके मनवांछित को प्रदान करे |
* समुद्रमथनाज्जाता जगदानन्दकारिका।*
*हरिप्रिया च माङ्गल्या तां श्रियञ्च ब्रुवन्तु नः।।*
जो समुद्र के मन्थन के द्वारा उतपन्न हुई हो ,जगत को आनन्द देने वाली हो, भगवान विष्णु को प्रिय हो , ऐसी लक्ष्मी आपके घर में वास हो,इसी मंगल कामना के साथ
।। *शुभम भवतु* ।।
============================================================================
NavRaatri Special –
औषधियों में विराजमान है 9 दुर्गा
1 – माँ शैलपुत्री – (हरड़ ) = कही प्रकार के रोगों में काम आने वाली औषधि हरड़ हिमावती है जो देवी शैलपुत्री का ही एक रूप है यह आयुर्वेद की प्रदान औषधि है यह पथया , हरितिका , अमृता , हेमवती , कायस्थ , चेतकी , और श्रेयसी , सात प्रकार की होती है !
2 – माँ ब्रह्मचारिणी – ( ब्राह्मी ) = ब्राह्मी आयु व याददाश्त बढ़ाकर रक्त विकारो को दूर कर स्वर को मधुर बनाती है इसलिए इसे सरस्वती भी कहाँ जाता है !
3 – माँ चंद्रघंटा – ( चंदू सुर ) = यह एक ऐसा पौधा है जो घनिया के समान है यह औषधि मोटापा दूर करने में लाभदायक है इसलिए इसे चर्म हन्ति भी कहते है !
4 – माँ कुष्मांडा – ( पेठा ) = इस औषधि से पेठा मिठाई बनती है इसलिए इस रूप को पेठा कहते है इसे कुम्हड़ा भी कहते है जो रक्त विकार दूर कर पेट साफ़ करने में सहायक है मानसिक रोगों में यह अम्रत समान है !
5 – माँ स्कंदमाता – ( अलसी ) = देवी स्कंदमाता औषधि के रूप में अलसी में विराजमान है यह वत , पित , व कफ रोगों की नाशक औषधि है !
6 – माँ कात्यायनी – ( मोइया ) = देवी कात्यायनी को आयुर्वेद में कई नामो से जाना जाता है जेसे अम्बा , अम्बालिका , व अम्बिका इसके अलावा इन्हें मोइ या भी कहते है यह औषधि कफ , पित , व गले के रोगों का नाश करती है !
7 – माँ कालरात्रि – ( नागदौन )= यह देवी नागदौन औषधि के रूप में जानी जाती है यह सभी प्रकार के रोगों में लाभकारी है और मन एवं मष्तिष्क के विकारो को दूर करने वाली औषधि है !
8 – माँ महागौरी – ( तुलसी ) = तुलसी सात प्रकार की होती है सफेद तुलसी , काली तुलसी , मरुता , दवना , कुठे , रक , अर्जक , और षट् पत्र , यह रक्त को साफ कर ह्रदय रोगों का नाश करती है !
9 – माँ सिद्धिदात्री – ( शतावरी ) = दुर्गा माँ का नोवा रूप सिद्धिदात्री है जिसे नारायणी शतावरी कहते है यह बल , बुद्धि , एवं विवेक के किये बहुत लाभदायक है
जानकारी
16 सिद्धियाँ –
1. वाक् सिद्धि : –
जो भी वचन बोले जाए वे व्यवहार में पूर्ण हो, वह वचन कभी व्यर्थ न जाये, प्रत्येक शब्द का महत्वपूर्ण अर्थ हो, वाक् सिद्धि युक्त व्यक्ति में श्राप अरु वरदान देने की क्षमता होती हैं.
2. दिव्य दृष्टि सिद्धि:-
दिव्यदृष्टि का तात्पर्य हैं कि जिस व्यक्ति के सम्बन्ध में भी चिन्तन किया जाये, उसका भूत, भविष्य और वर्तमान एकदम सामने आ जाये, आगे क्या कार्य करना हैं, कौन सी घटनाएं घटित होने वाली हैं, इसका ज्ञान होने पर व्यक्ति दिव्यदृष्टियुक्त महापुरुष बन जाता हैं.
3. प्रज्ञा सिद्धि : –
प्रज्ञा का तात्पर्य यह हें की मेधा अर्थात स्मरणशक्ति, बुद्धि, ज्ञान इत्यादि! ज्ञान के सम्बंधित सारे विषयों को जो अपनी बुद्धि में समेट लेता हें वह प्रज्ञावान कहलाता हें! जीवन के प्रत्येक क्षेत्र से सम्बंधित ज्ञान के साथ-साथ भीतर एक चेतनापुंज जाग्रत रहता हें.
4. दूरश्रवण सिद्धि :-
इसका तात्पर्य यह हैं की भूतकाल में घटित कोई भी घटना, वार्तालाप को पुनः सुनने की क्षमता.
5. जलगमन सिद्धि:-
यह सिद्धि निश्चय ही महत्वपूर्ण हैं, इस सिद्धि को प्राप्त योगी जल, नदी, समुद्र पर इस तरह विचरण करता हैं मानों धरती पर गमन कर रहा हो.
6. वायुगमन सिद्धि :-
इसका तात्पर्य हैं अपने शरीर को सूक्ष्मरूप में परिवर्तित कर एक लोक से दूसरे लोक में गमन कर सकता हैं, एक स्थान से दूसरे स्थान पर सहज तत्काल जा सकता हैं.
7. अदृश्यकरण सिद्धि:-
अपने स्थूलशरीर को सूक्ष्मरूप में परिवर्तित कर अपने आप को अदृश्य कर देना! जिससे स्वयं की इच्छा बिना दूसरा उसे देख ही नहीं पाता हैं.
8. विषोका सिद्धि :-
इसका तात्पर्य हैं कि अनेक रूपों में अपने आपको परिवर्तित कर लेना! एक स्थान पर अलग रूप हैं, दूसरे स्थान पर अलग रूप हैं.
9. देवक्रियानुदर्शन सिद्धि :-
इस क्रिया का पूर्ण ज्ञान होने पर विभिन्न देवताओं का साहचर्य प्राप्त कर सकता हैं! उन्हें पूर्ण रूप से अनुकूल बनाकर उचित सहयोग लिया जा सकता हैं.
10. कायाकल्प सिद्धि:-
कायाकल्प का तात्पर्य हैं शरीर परिवर्तन! समय के प्रभाव से देह जर्जर हो जाती हैं, लेकिन कायाकल्प कला से युक्त व्यक्ति सदैव तोग्मुक्त और यौवनवान ही बना रहता हैं.
11. सम्मोहन सिद्धि :-
सम्मोहन का तात्पर्य हैं कि सभी को अपने अनुकूल बनाने की क्रिया! इस कला को पूर्ण व्यक्ति मनुष्य तो क्या, पशु-पक्षी, प्रकृति को भी अपने अनुकूल बना लेता हैं.
12. गुरुत्व सिद्धि:-
गुरुत्व का तात्पर्य हैं गरिमावान! जिस व्यक्ति में गरिमा होती हैं, ज्ञान का भंडार होता हैं, और देने की क्षमता होती हैं, उसे गुरु कहा जाता हैं! और भगवन कृष्ण को तो जगद्गुरु कहा गया हैं.
13. पूर्ण पुरुषत्व सिद्धि:-
इसका तात्पर्य हैं अद्वितीय पराक्रम और निडर, एवं बलवान होना! श्रीकृष्ण में यह गुण बाल्यकाल से ही विद्यमान था! जिस के कारन से उन्होंने ब्रजभूमि में राक्षसों का संहार किया! तदनंतर कंस का संहार करते हुए पुरे जीवन शत्रुओं का संहार कर आर्यभूमि में पुनः धर्म की स्थापना की.
14. सर्वगुण संपन्न सिद्धि:-
जितने भी संसार में उदात्त गुण होते हैं, सभी कुछ उस व्यक्ति में समाहित होते हैं, जैसे – दया, दृढ़ता, प्रखरता, ओज, बल, तेजस्विता, इत्यादि! इन्हीं गुणों के कारण वह सारे विश्व में श्रेष्ठतम व अद्वितीय मन जाता हैं, और इसी प्रकार यह विशिष्ट कार्य करके संसार में लोकहित एवं जनकल्याण करता हैं.
15. इच्छा मृत्यु सिद्धि :-
इन कलाओं से पूर्ण व्यक्ति कालजयी होता हैं, काल का उस पर किसी प्रकार का कोई बंधन नहीं रहता, वह जब चाहे अपने शरीर का त्याग कर नया शरीर धारण कर सकता हैं.
16. अनुर्मि सिद्धि:-
अनुर्मि का अर्थ हैं. जिस पर भूख-प्यास, सर्दी-गर्मी और भावना-दुर्भावना का कोई प्रभाव न हो..
============================================================================
विश्वविजय सरस्वती कवच
सरस्वती ज्ञान, बुद्धि, कला व संगीत की देवी हैं। इनकी उपासना करने से मुर्ख व्यक्ति भी विद्वान बन सकता है। अनेक प्रकार से देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। उन्हीं में से एक है विश्वविजय सरस्वती कवच। यह बहुत ही अद्भुत है। विद्यार्थियों के लिए यह विशेष फलदाई है। धर्मशास्त्रों के अनुसार भगवती सरस्वती के इन अदुभुत विश्वविजय सरस्वती कवच को धारण करके ही महर्षि वेदव्यास, ऋष्यश्रृंग, भरद्वाज, देवल तथा जैगीषव्य आदि ऋषियों ने सिद्धि पाई थी। इस कवच को सर्वप्रथम भगवान श्रीकृष्ण ने वृंदावन में रासोत्सव के समय ब्रह्माजी से कहा था। इसके बाद ब्रह्माजी ने गंदमादन पर्वत पर भृगुमुनि को इसे बताया था।
विश्वविजय सरस्वती कवच
श्रीं ह्रीं सरस्वत्यै स्वाहा शिरो मे पातु सर्वत:।
श्रीं वाग्देवतायै स्वाहा भालं मे सर्वदावतु।।
ऊँ सरस्वत्यै स्वाहेति श्रोत्र पातु निरन्तरम्।
ऊँ श्रीं ह्रीं भारत्यै स्वाहा नेत्रयुग्मं सदावतु।।
ऐं ह्रीं वाग्वादिन्यै स्वाहा नासां मे सर्वतोवतु।
ह्रीं विद्याधिष्ठातृदेव्यै स्वाहा ओष्ठं सदावतु।।
ऊँ श्रीं ह्रीं ब्राह्मयै स्वाहेति दन्तपंक्ती: सदावतु।
ऐमित्येकाक्षरो मन्त्रो मम कण्ठं सदावतु।।
ऊँ श्रीं ह्रीं पातु मे ग्रीवां स्कन्धं मे श्रीं सदावतु।
श्रीं विद्याधिष्ठातृदेव्यै स्वाहा वक्ष: सदावतु।।
ऊँ ह्रीं विद्यास्वरुपायै स्वाहा मे पातु नाभिकाम्।
ऊँ ह्रीं ह्रीं वाण्यै स्वाहेति मम पृष्ठं सदावतु।।
ऊँ सर्ववर्णात्मिकायै पादयुग्मं सदावतु।
ऊँ रागधिष्ठातृदेव्यै सर्वांगं मे सदावतु।।
ऊँ सर्वकण्ठवासिन्यै स्वाहा प्राच्यां सदावतु।
ऊँ ह्रीं जिह्वाग्रवासिन्यै स्वाहाग्निदिशि रक्षतु।।
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सरस्वत्यै बुधजनन्यै स्वाहा।
सततं मन्त्रराजोऽयं दक्षिणे मां सदावतु।।
ऊँ ह्रीं श्रीं त्र्यक्षरो मन्त्रो नैर्ऋत्यां मे सदावतु।
कविजिह्वाग्रवासिन्यै स्वाहा मां वारुणेऽवतु।।
ऊँ सदाम्बिकायै स्वाहा वायव्ये मां सदावतु।
ऊँ गद्यपद्यवासिन्यै स्वाहा मामुत्तरेवतु।।
ऊँ सर्वशास्त्रवासिन्यै स्वाहैशान्यां सदावतु।
ऊँ ह्रीं सर्वपूजितायै स्वाहा चोध्र्वं सदावतु।।
ऐं ह्रीं पुस्तकवासिन्यै स्वाहाधो मां सदावतु।
ऊँ ग्रन्थबीजरुपायै स्वाहा मां सर्वतोवतु।।
============================================================================
Evil Eye/Psychic Attacks/Nazar Dosh
Use Gomti Chakra
Energiesd Gomti Chakras-Gomti Chakra is a rare natural and spiritual product, a form of shell stone.Gomti Chakra is found in gomti River in Dwarka, a part of Gujarat in India.Gomti Chakra is also known as Sudarshan Chakra as it resembles the divine weapon of Lord Krishna – the Sudarshan Chakra. It is believed to bring luck and is used specially in spiritual rituals.
If someone is repeatedly caught under the evil eye/Psychic Attack,
then they must go to a secluded place and take3 Gomti Chakras with them and move them over your head up to 7 times and then throw them off your back. Do not look back immediately, you’ll definitely see results.
Apply it in Krishna Paksha..till Amavasya.
Thank You and Take care.
Shivay Namaha
============================================================================
कुण्डलिनी शक्ति
मनुष्य शरीर स्थित कुंडलिनी शक्ति में जो चक्र स्थित होते हैं उनकी संख्या सात बताई गई है।
यह जानकारी शास्त्रीय, प्रामाणिक एवं तथ्यात्मक है-
(1) मूलाधार चक्र – गुदा और लिंग के बीच चार पंखुरियों वाला ‘आधार चक्र’ है । आधार चक्र का ही एक दूसरा नाम मूलाधार चक्र भी है। वहाँ वीरता और आनन्द भाव का निवास है ।
(2) सवाधिष्ठान चक्र – इसके बाद स्वाधिष्ठान चक्र लिंग मूल में है । उसकी छ: पंखुरियाँ हैं । इसके जाग्रत होने पर क्रूरता,गर्व, आलस्य, प्रमाद, अवज्ञा, अविश्वास आदि दुर्गणों का नाश होता है ।
(3) मणिपूर चक्र – नाभि में दस दल वाला मणिचूर चक्र है । यह प्रसुप्त पड़ा रहे तो तृष्णा, ईष्र्या, चुगली, लज्जा, भय, घृणा, मोह, आदि कषाय-कल्मष मन में लड़ जमाये पड़े रहते हैं ।
(4) अनाहत चक्र – हृदय स्थानमें अनाहत चक्र है । यह बारह पंखरियों वाला है । यह सोता रहे तो लिप्सा, कपट, तोड़ -फोड़, कुतर्क, चिन्ता, मोह, दम्भ, अविवेक अहंकार से भरा रहेगा । जागरण होने पर यह सब दुर्गुण हट जायेंगे ।
(5) विशुद्ध चक्र – कण्ठ में विशुद्धख्य चक्र यह सरस्वती का स्थान है । यह सोलह पंखुरियों वाला है। यहाँ सोलह कलाएँ सोलह विभूतियाँ विद्यमान है
(6) आ्ञाचक्र – यह 3 पंखुरियों वाला है। भू्रमध्य में आज्ञा चक्र है, यहाँ ‘?’ उद्गीय, हूँ, फट, विषद, स्वधा स्वहा, सप्त स्वर आदिका निवास है । इस आज्ञा चक्र का जागरण होने से यह सभी शक्तियाँ जाग पड़ती हैं।
(7) सहस्रार चक्र – सहस्रार की स्थिति मस्तिष्क के मध्यभाग में है । शरीर संरचना में इस स्थान पर अनेक महत्वपूर्ण ग्रंथियों से सम्बन्ध रैटिकुलर एक्टिवेटिंग सिस्टम का अस्तित्व है । वहाँ से जैवीय विद्युत का स्वयंभू प्रवाह उभरता है । किसी भी साधना के सफल होने का प्रतिशत साधक के शरीर के चक्रों के संतुलित होने पर निर्भर करता है।
चक्र जागरण के मंत्र….
*मूलाधार चक्र – “ ॐ लं परम तत्वाय गं ॐ फट “
* स्वाधिष्ठान चक्र – “ ॐ वं वं स्वाधिष्ठान जाग्रय जाग्रय वं वं ॐ फट “
* मणिपुर चक्र – “ ॐ रं जाग्रनय ह्रीम मणिपुर रं ॐ फट “
* अनाहत चक्र – “ ॐ यं अनाहत जाग्रय जाग्रय श्रीं ॐ फट “
* विशुद्ध चक्र – “ ॐ ऐं ह्रीं श्रीं विशुद्धय फट “
* आज्ञा चक्र – “ ॐ हं क्षं चक्र जगरनाए कलिकाए फट “
* सहस्त्रार चक्र – “ ॐ ह्रीं सहस्त्रार चक्र जाग्रय जाग्रय ऐं फट “
बीज मंत्र , जिनकी 108 माला करनी है ( एक दिन मे एक चक्र पर ही 108 माला करना है …
मूलाधार से आरंभ करना है
1 मूलाधार – “ लं “
2 ♦सवाधिष्ठान- “ वं “
3 मणिपुर – “ रं “
4 ♦अनाहत- “ यं “
5 विशुद्ध – “ हं “
6 ♦आज्ञा – “ ॐ “
7 सहस्त्रार – “ ॐ “
============================================================================
गुरुपुष्यामृत एक आध्यात्मीक पर्वणी–
सत्तावीस नक्षत्रांमधे आठवे येणारे पुष्य नक्षत्र हे सर्वात शक्तिशाली, अतिशय तेजस्वी तसेच आध्यात्मिक शक्ति संपन्न मानले जाते. पुष्य नक्षत्रास सत्तावीस नक्षत्रांचा राजा मानले आहे. काही परंपरांमध्ये हे माँ महालक्ष्मीचे जन्म नक्षत्र मानले आहे. या नक्षत्राचा स्वामी शनी असल्याने हे स्थिरता, संयमाचे प्रतीक आहे. गुरु ग्रह अधिष्ठता असल्याने हे नक्षत्र समृद्धीचे प्रतीकसुद्धा आहे. या नक्षत्राचा आकार गाईच्या कासेसारखा आहे जो मातृत्वाचे प्रतिक आहे. पुष्य नक्षत्राचे तीन तारे असून हे देवी महाकाली, महालक्ष्मी आणि महासरस्वतीचे प्रतीक मानले जातात. पुष्य शब्द संस्कृत क्रियापद “पुष पोषणे’ पुष्टी किंवा पोषण या शब्दाचे साधित रूप आहे. हे नक्षत्र गुरूकृपा,दैवी ज्ञान, स्थिरता समृद्धी देणारे आहे. हे नक्षत्र आधुनिक राशिचक्रानुसार कर्कराशीमधे असून श्री गणेश ही देवता या नक्षत्राचा स्वामी आहे.
चंद्र या नक्षत्रामध्ये स्थित असतो तेव्हा, तो पुष्ययोग आहे असे मानले जाते. जर गुरुवारच्या दिवशी चंद्र पुष्य नक्षत्रामध्ये स्थित असेल तर त्यास गुरुपुष्यामृत योग असे म्हणतात. योग्य स्थिती असलेल्या पुष्य नक्षत्रामधे गुरु ग्रह (अधिष्ठाता) व शनी ग्रहाची (नक्षत्र स्वामी) एकत्र सकारात्मक ऊर्जा प्रगटते.
लौकिकातील सोने, मौल्यवान वस्तू वाहन यांची खरेदी, नवीन कार्याचा आरंभ, नूतन वास्तूचा पाया खोदणे, नवीन व्यवसायाची सुरुवात इत्यादी करता पुष्य नक्षत्र सर्वश्रुत आहेच आपण आज पुष्य नक्षत्राच्या आध्यात्मिक उपयोगीतेबद्दल विचार करणार आहोत.
गुरु प्राप्तीकरिता आपल्या ईष्ट देवतेस प्रार्थना करावी, ईष्ट देवतेचे पूजन, दर्शन आणि सद्ग्रंथांचे वाचन पारायण करावे.
गुरु कृपेकरिता गुरूंचे दर्शन, पाद्यपूजा, सेवा, अनुग्रह प्राप्त झाला असल्यास गुरुमंत्राचा जप, ध्यान या मुहूर्तावर केल्यास विशेष फलदायी ठरते.
गुरु देहात नसतील तर त्यांच्या पादुका, समाधीचे दर्शन अथवा अन्य काही कारणामुळे प्रत्यक्ष दर्शन भेट शक्य नसल्यास मानसपूजा,ध्यान करून त्यांच्या कृपेचा लाभ करून घ्यावा.
माँ महालक्ष्मीची कृपा प्राप्त करून घेण्याकरिता तिचे पूजन होम हवन , चंडीपाठ इत्यादी उपासना या दिवशी केली तर ती विशेष फलदायी ठरते. महालक्ष्मी बरोबरच भगवान विष्णूंची पूजा देखील केली जाते.
माँ काली व शंकराची पूजा देखील या दिवशी अगत्याने करावी. तंत्र मार्गातील व्यक्ती व साधक या मुहूर्ताची चातकाप्रमाणे वाट पाहत असतात.
माँ चे तिसरे रूप असणाऱ्या सरस्वती मातेची पूजा करून सरस्वतीच्या एखाद्या मंत्राचे अनुष्ठान यथाशक्ती जप, हवन आदी केल्यास बुद्धी व इतर कौशल्यामध्ये वाढ दिसून येते. या करीता कार्तिकेयस्वामी विरचित प्रज्ञाविवर्धन स्तोत्राचा जप देखील या दिवशी केल्यास विशेष फलदायी ठरतो. भारतीय संस्कृती व परंपरा यावर श्रद्धा असणाऱ्या सर्व विद्यार्थी वर्ग व त्यांच्या पालकांकरिता ही एक सुसंधीच आहे. आठ वर्षाखालील बालकांकरिता त्यांच्या माता, पिता किंवा घरातील ज्येष्ठ व्यक्तीने त्या बालकास मांडीवर घेऊन जप आदी केले तरी चालते. आठ वर्षावरील बालकांनी स्वतः करणे श्रेयस्कर आहे. येथे काही प्रसिद्ध सरस्वती मंत्र देत आहे, इच्छूकांनी एखाद्या अधिकारी पुरुषाचे मार्गदर्शन घेऊन त्यापैकी एखाद्या किंवा इतर मंत्रांचा जप करावा.
१.नमस्ते शारदे देवी सरस्वती मतिप्रदे।
वसत्वं मम जिव्हाग्रे सर्वविद्याप्रदा
भव ।।
( श्री प प वासुदेवानंद सरस्वती विरचित )
२. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं वाग्देव्यै सरस्वत्यै नमः ।
३. ॐ ह्रीं श्रीं शारदायै नमः ।
४. ॐ ह्रीं ऐं ह्रीं सरस्वत्यै नमः ।
५. ॐ ह्रीं वेद मातृभ्य: स्वाहा।
६. ॐ ऐं महासरस्वत्यै नमः |
७. या देवी सर्वभूतेषु विद्यारूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
या वर्षातील येणारे गुरुपुष्यामृत योग याप्रमाणे
1. ९ मार्च २०१७ सकाळीं ०६:४८ ते संध्याकाळी ०५:१२
अवधी १० तास २४ मिनिटे
2. ९ नोव्हेंबर २०१७ दुपारी ०१:३९ ते सकाळी ०६;३७ ( शुक्रवार १० नोव्हेंबर)
अवधी १६ तास ५८ मिनिटे
3. ७ डिसेंबर २०१७सकाळीं ०६:५२ ते संध्याकाळी ०७:५४
अवधी १३ तास २ मिनिटे
जय श्रीसद्गुरुदेव दत्त
============================================================================